उसमान बिन अबुल आस (रज़ियल्लाहु अनहु) का वर्णन है कि उन्होंने कहा: ऐ अल्लाह के रसूल! मुझे मेरी क़ौम का इमाम बना दें। आपने फ़रमाया: तुम उनके इमाम हो। उनके सबसे कमज़ोर व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए नमाज़ पढ़ाओ और ऐसा मुअज़्ज़िन (अज़ान देने वाला) नियुक्त करो, जो अज़ान देने का मेहनताना न लेता हो।
"عن عثمان بن أبي العاص -رضي الله عنه- قال: يا رسول الله، اجعلني إمام قومي، قال: «أنت إمامهم، وَاقْتَدِ بأضعفهم، وَاتَّخِذْ مُؤَذِّناً لا يأخذ على أذانه أجرا». [صحيح.] - [رواه أبو داود والنسائي وأحمد.]