आइशा (रज़ियल्लाहु अनहा) कहती हैं कि अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) जब तेज़ हवाएँ चलतीं तो यह दुआ पढ़ा करते थे: «اللَّهُمَّ إنِّي أسْأَلُك خَيرها وخير ما فيها وخَير ما أُرسِلت به، وأعوذ بك من شرِّها وشرِّ ما فيها وشرِّ ما أُرسِلت به» अर्थात, “ऐ अल्लाह ! मैं तुझसे इसकी भलाई तथा जो भलाई इसमें रखी गई है और जिस भलाई के साथ यह भेजी गई है, का सवाल करता हूँ और तेरी शरण माँगता हूँ, इसकी बुराई से तथा उस बुराई से जो इसमें में रखी गई है और उस बुराई से जिस के साथ यह भेजी गई है।
كُنَّا إِذَا صَعِدْنَا كَبَّرْنَا، وَإِذَا نَزَلْنَا سَبَّحْنَا. عن ابن عمر -رضي الله عنهما- قالَ: كانَ النبيُّ -صلى الله عليه وسلم- وجيُوشُهُ إِذَا عَلَوا الثَّنَايَا كَبَّرُوا، وَإِذَا هَبَطُوا سَبَّحُوا.- [ رواه البخاري..]